साहित्य का स्वभाव है निर्वचन करना (और बमुश्किल कभी ' मौन ' रहना) और वह प्रेम को एक तरह की अलंकारिकता दे सकता है लेकिन ऐसा करके वह उसे मिथकीय भी बनाता है.
2.
शब्द में केवल एक वर्ण किसी धातु से मिलता हो तो भी नि: संशय होकर केवल उस वर्ण की समानता को लेकर उस धातु से शब्द का निर्वचन करना, लेकिन अमुक शब्द का निर्वचन शक्य नहीं है, ऐसा कभी न कहना, इस बात का सूचक है।